बैलगाड़ी के दौर में देश को दोपहिया वाहनों पर दौड़ाने वाला स्कूटर का ब्रांड देसी वक्त के आगे हार गया। बदलाव में ढिलाई और ढुलमुल नीतियों ने कभी रुपहले पर्दे के नायकों और क्रिकेटरों की पहली पसंद रहे 'शान की सवारी' विजय सुपर और डीलक्स जैसे ब्रांड को भी बाजार में टिकने नहीं दिया। प्रयोग की आंधी लेकर भारत पहुंची तमाम अंतरराष्ट्रीय कंपनियां दिग्गज कंपनी के सारे ब्रांड निगल गईं।
स्कूटर इंडिया का रोचक और स्वर्णिम सफर देश की आन-बान और शान माना जाता था। इसलिए क्योंकि बैलगाड़ी वाले देश में यह इकलौती देसी ऑटोमोबाइल कंपनी जो थी। अस्सी के दशक में इसका रसूख देखते ही बनता था। हर जुबां पर इसके ब्रांड छाए थे। एक समय ऐसा भी आया, जब एक साल में कंपनी ने 35 हजार से ज्यादा विजय डीलक्स और विजय सुपर स्कूटर तैयार कर डाले। विजय डीलक्स का तो बाजार पर एकछत्र राज था। देसी ब्रांड की साख का अंदाजा इसी से लगा सकते हैैं कि 1983 में जब कपिल देव की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने पहली बार विश्व कप जीता तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने सभी खिलाडिय़ों को एक-एक विजय डीलक्स स्कूटर भेंट किया। खिलाडिय़ों के बीच यह ब्रांड खासे लोकप्रिय थे।
आमजन ही नहीं, फिल्मी पर्दे पर भी स्कूटर इंडिया के ब्रांड का दबदबा था। फिल्मों के अतीत में झांकेंगे तो विजय डीलक्स और विजय सुपर पर सवार हीरो की ग्लैमरस इंट्री ताजा हो जाएगी। ये स्कूटर नायकों की पहली पसंद माने जाते थे। आलम यह था कि स्कूटर की एक अन्य बड़ी कंपनी विजय सुपर व डीलक्स के सामने लंबे वक्त तक टिक नहीं पाई। बीएचईएल के ऑटोमैटिक गियर बॉक्स बनाकर बड़ा मुनाफा कमाया। समय गुजरता गया मगर वक्त केसाथ नाम पर धूल जमती चली गई।देश ही नहीं, स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड कंपनी के लम्ब्रेटा, विजय डीलक्स, सुपर स्कूटर ने दुनिया भर में कामयाबी के झंडे गाड़े। लम्ब्रेटा की खासियत थी कि ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर भी अपने सवार को लडख़ड़ाने नहीं देता था।